रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए न केवल व्यक्तिगत रूप से उनकी अगवानी की, बल्कि दोनों नेता एयरपोर्ट से अपनी-अपनी बख्तरबंद गाड़ियों को छोड़कर एक सफेद टोयोटा फॉर्च्यूनर एसयूवी में सवार होकर एक साथ रवाना हुए। इस 'कार डिप्लोमेसी' ने सुरक्षा से ज़्यादा, गहरे भू-राजनीतिक संदेश देने का काम किया है।
पश्चिमी वाहनों से दूरी का संदेश
इस कदम का सबसे बड़ा राजनीतिक अर्थ पश्चिमी देशों को दिया गया सीधा संदेश माना जा रहा है।
-
यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूस पर भारी प्रतिबंध लगाए हैं और यूक्रेन को हथियार तथा आर्थिक मदद दे रहे हैं।
-
पारंपरिक रूप से राष्ट्राध्यक्षों के काफिले में अक्सर जर्मन या यूरोपीय ब्रांड की बख्तरबंद गाड़ियाँ (जैसे बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज) होती हैं। जर्मनी यूक्रेन का एक बड़ा सहयोगी रहा है।
-
जानकारों का मानना है कि पुतिन का यूरोपीय कंपनी की गाड़ी में नहीं बैठना, पश्चिमी देशों की कंपनियों पर निर्भरता कम करने और उन्हें एक कड़ा राजनीतिक संकेत देने का इरादा हो सकता है।
🇮🇳 'मेक इन इंडिया' और एशियाई एकजुटता
दोनों नेताओं के फॉर्च्यूनर में बैठने के कई सकारात्मक मायने भी निकाले जा रहे हैं:
-
मेक इन इंडिया: भले ही टोयोटा एक जापानी कंपनी हो, लेकिन फॉर्च्यूनर अब भारत में बनती है, जिसका प्लांट कर्नाटक के बिदादी में है। इस 'भारत में निर्मित' वाहन का उपयोग करना आत्मनिर्भर भारत पहल को बढ़ावा देने का प्रतीक है।
-
एशियाई साझेदारी: फॉर्च्यूनर के जापानी (एशियाई) ब्रांड का होना यह भी दर्शाता है कि पीएम मोदी की ओर से पुतिन को इस कार में ले जाना पश्चिमी देशों को साफ संदेश था कि भारत और रूस अब उन पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि एशियाई सहयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं।
-
सुरक्षा पर भरोसा: पुतिन के बैठने से पहले रूसी सुरक्षा एजेंसियों ने कार को क्लियर किया था, लेकिन एक साधारण (नॉन-आर्मर्ड) कार का इस्तेमाल यह भी दर्शाता है कि उन्हें भारत की सुरक्षा व्यवस्था में पूरा भरोसा है।
पुतिन के दौरे का मुख्य फोकस
यूक्रेन युद्ध बढ़ने के बाद पुतिन की यह पहली भारत यात्रा है और यह अमेरिकी प्रतिबंधों तथा दंडात्मक टैरिफ़ के बैकग्राउंड में हो रही है।
-
मुख्य एजेंडा: इस दौरे का मुख्य फोकस रक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग, आर्थिक संबंधों और $100 बिलियन के व्यापार लक्ष्य पर रहने की उम्मीद है।
-
साझा उद्देश्य: फॉर्च्यूनर डिप्लोमेसी इस बात को पुष्ट करती है कि दोनों ही देश मिलकर अपनी पश्चिमी देशों पर डिपेंडेंसी कम करने की कोशिश कर रहे हैं और रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत कर रहे हैं।
यह 'कार डिप्लोमेसी' न केवल दोनों नेताओं के मजबूत व्यक्तिगत संबंधों को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों के बीच भी भारत और रूस की विशेष रणनीतिक साझेदारी दृढ़ बनी हुई है।